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04:32, 23 मार्च 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल
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|संग्रह=
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<poem>
तेरी सूरत उतर गई कैसे
आईने पे नज़र गई कैसे
सारी मग़रूरियत गई तेरी
ये बता दे मगर गई कैसे
झील जैसी किसी की आंखों में
डूब कर मैं उबर गई कैसे
हम ज़रा देर उनसे उलझे थे
ज़िंदगानी सँवर गई कैसे
जिस मुहब्बत के तुम मुख़ालिफ़ थे
वो गले से उतर गई कैसे
थी फरिश्ता सिफ़त नज़र उसकी
फिर गुनहगार कर गई कैसे
आप दिल में हमारे बसते हैं
आप तक ये ख़बर गई कैसे
आप के साथ साथ चलने से
ज़िंदगानी ठहर गई कैसे
तुम ने ठोकर लगाई थी मुझको
दिल की धड़कन बिखर गई कैसे
हाय नीची नज़र सुमन तेरी
घर मेरे दिल में कर गई कैसे
</poem>