भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरी सूरत उतर गई कैसे / सुमन ढींगरा दुग्गल
Kavita Kosh से
तेरी सूरत उतर गई कैसे
आईने पे नज़र गई कैसे
सारी मग़रूरियत गई तेरी
ये बता दे मगर गई कैसे
झील जैसी किसी की आंखों में
डूब कर मैं उबर गई कैसे
हम ज़रा देर उनसे उलझे थे
ज़िंदगानी सँवर गई कैसे
जिस मुहब्बत के तुम मुख़ालिफ़ थे
वो गले से उतर गई कैसे
थी फरिश्ता सिफ़त नज़र उसकी
फिर गुनहगार कर गई कैसे
आप दिल में हमारे बसते हैं
आप तक ये ख़बर गई कैसे
आप के साथ साथ चलने से
ज़िंदगानी ठहर गई कैसे
तुम ने ठोकर लगाई थी मुझको
दिल की धड़कन बिखर गई कैसे
हाय नीची नज़र सुमन तेरी
घर मेरे दिल में कर गई कैसे