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01:04, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
हिम्मति ना हार्यो सजनवा
कि धीरे धीरे दुनिया बदलि देबै नाय
मिटिहैं जुलुम के निसनवा
कि धीरे धीरे दुनिया बदलि देबै नाय
भूखेन का रोटी पियासेन का पानी
सुधुवन पर जब कउनौ लाठी न तानी
सुधरी कचेहरी और थनवा
कि धीरे धीरे दुनिया बदलि देबै नाय
लातन ना गउंजी जब हउसन का कोई
दौलति के आगे जब मेहनति ना रोई
जगर मगर होइहै ंसपनवा
कि धीरे धीरे दुनिया बदलि देबै नाय
आवौ तौ ई अंधरी खांइन का पाटी
रस्सिन का बेड़िन का मुस्कन का काटी
तागति ते भरि जइहै मनवा
कि धीरे धीरे दुनिया बदलि देबै नाय
</poem>