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01:08, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=सुशील सिद्धार्थ
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
साधो हियैं मदारी पासी
रचिसि यूनियन एका जुटिगे हैदर और हुलासी
जमींदार अंगरेज ते मिलिकै घर घर लेंइ तलासी
लरिका मेहरी सबका पीटैं गाउं ते करैं निकासी
कहै मदारी मेहनतकस कै ख्यात हैं काबा कासी
कोठी गिरिहैं गोरवा भगिहैं बने रहौ बिसवासी
दाने दाने क अदिमी तरसै मिलै न ताजी बासी
चलौ उठावौ हंसिया हरबा जनता भई लड़ासी
लड़ा मदारी जागी जनता दउरी भूंखि पियासी
यहे तना दुनिया बदलति है सांची कही न हांसी
</poem>