भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साधो हियैं मदारी पासी / बोली बानी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
साधो हियैं मदारी पासी
रचिसि यूनियन एका जुटिगे हैदर और हुलासी
जमींदार अंगरेज ते मिलिकै घर घर लेंइ तलासी
लरिका मेहरी सबका पीटैं गाउं ते करैं निकासी
कहै मदारी मेहनतकस कै ख्यात हैं काबा कासी
कोठी गिरिहैं गोरवा भगिहैं बने रहौ बिसवासी
दाने दाने क अदिमी तरसै मिलै न ताजी बासी
चलौ उठावौ हंसिया हरबा जनता भई लड़ासी
लड़ा मदारी जागी जनता दउरी भूंखि पियासी
यहे तना दुनिया बदलति है सांची कही न हांसी