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01:39, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
सहरन ते जुड़िगा है
हमरे गाँव क्यार गलियारा
नयी रोसनी आय रही
सब गावैं लिहे चिकारा
पहिले जमीदार के चंगुल-
मा सब रहैं फँसे
अब छोटभैया ठग नेता
गाँवैंम आय बसे
जाल रचैं स्वारथ की खातिर
इनते बिधिनौ हारा
मउके पर कोरे कगदन पर
अँगुठा लगवावैं
सालुइ भीतर ई घर की
नीलामी करवावैं
भूखे मरब नीक है
इनते मिलै अगर छुटकारा
जब लौ तथा रही तब लौ
ई मददगार रहिहैं
चारिउ पहर हाजिरी तुमरे घरहेम दइ जइहैं
बिरछ लगइहैं दिन मा
अउरु राति भर चलिहैं आरा
<poem>