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{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
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|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
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<poem>
चइत कइस भुजवा बनि
घूमौ डाँय-डाँय ना
जौ चाहति हौ दउआ
अब धरि-धरि खाँय ना

अइर-मइर कइकै
कस कटी यह जवानी
कबहुँ-कबहुँ कीन करौ
हरहन कै सानी
अइस कुछु करौ भइया
ककुआ दिकुआँय ना

यहर-वहर घूमि-घूमि
दुपहरि काटति हौ
कलुआ की कोठरी मा
गड्डी फ्याँटति हौ
ती पर या झन्न-झार
पुरिखा बिरझाँय ना

<poem>