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चइत कइस भुजवा बनि / बोली बानी / जगदीश पीयूष
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चइत कइस भुजवा बनि
घूमौ डाँय-डाँय ना
जौ चाहति हौ दउआ
अब धरि-धरि खाँय ना
अइर-मइर कइकै
कस कटी यह जवानी
कबहुँ-कबहुँ कीन करौ
हरहन कै सानी
अइस कुछु करौ भइया
ककुआ दिकुआँय ना
यहर-वहर घूमि-घूमि
दुपहरि काटति हौ
कलुआ की कोठरी मा
गड्डी फ्याँटति हौ
ती पर या झन्न-झार
पुरिखा बिरझाँय ना