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02:02, 24 मार्च 2019 {{KKRachna
|रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=बोली बानी / जगदीश पीयूष
}}
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<poem>
सूखि गवा है सावन दउआ
फिरि
बरखा के दिन आये हैं
आँखिन माँ सैलाब भरा है
पाहुन
जस दुरदिन आये हैं
जरै जेठु सावन-भादौं मा
छिपै पेटु-पीठी आँतन मा
खुसबू माटी केरि न महकी
कस
बरखा के दिन आये हैं
सपनु हुइ गये ताल-तलैया
झाँखर हुइ गे दादा भैया
नेहु सूखिगा सब आँखिन का
अस
बरखा के दिन आये हैं
फिल्मी रागु सुनावै भैया
पहर-पहर गरियावै मैया
जस करजी-मल्हार सब गावैं
तस
बरखा के दिन आये हैं
<poem>