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सूखि गवा है सावन दउआ / बोली बानी / जगदीश पीयूष
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सूखि गवा है सावन दउआ
फिरि
बरखा के दिन आये हैं
आँखिन माँ सैलाब भरा है
पाहुन
जस दुरदिन आये हैं
जरै जेठु सावन-भादौं मा
छिपै पेटु-पीठी आँतन मा
खुसबू माटी केरि न महकी
कस
बरखा के दिन आये हैं
सपनु हुइ गये ताल-तलैया
झाँखर हुइ गे दादा भैया
नेहु सूखिगा सब आँखिन का
अस
बरखा के दिन आये हैं
फिल्मी रागु सुनावै भैया
पहर-पहर गरियावै मैया
जस करजी-मल्हार सब गावैं
तस
बरखा के दिन आये हैं