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{{KKRachna
|रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी'
|अनुवादक=
|संग्रह=आकाश नीला है / बाल गंगाधर 'बागी'
}}
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<poem>
मनु की साजिश से इंसान जब फना होगा
फिर दहकता शोला, मेरे दर्द से बयां होगा
जुल्म की साजिश पे, काफिला चलेगा जब
हवा का रूख बदलेगा, जिधर धुआं होगा
नई-नई उम्मीद और नया चि़राग जलाओ
अब मनुवादियों का झंडा न यहाँ होगा
फिर मनुवाद अब आबाद यहाँ होगा अगर
मेरे मशाल से जलकर के वह भुना होगा
गैर इंसानी आवाज़ अगर निकलेगी फिर
बाग़ी जंग अछूत की तलवारों से बयां होगा
</poem>
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