Changes
No change in size,
17:38, 5 मई 2019
<poem>
2154
मर जाऊँगा,
तुम्हारे लिए जग में
फिर आऊँगा !
2255
पूजा न जानूँ
न देखा ईश्वर को
तुमको देखा !
2356
प्रतिमा रोई
कलुष न धो पाई,
भक्तों ने बाँटे ।
2457
व्यथा के घन
फट जाएँ जो कभी
पर्वत डूबें ।
2558
नाग-नागिन
लिपटे तन-मन
जकड़ा कण्ठ ।
2659
पाषाण थे वे
न पिंघले ,न जुड़े
टूटे न छूटे ।
2760
अश्रु ने कही
सिर्फ तुमने बाँची
व्यथा की कथा।
2861
घने अँधेरे
प्रकम्पित लौ तुम
किए उजेरे।
2962
निराश मन
चूम तेरे अधर
पाता जीवन
3063
नेह का नीर
हर लेना प्रिय की