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11:13, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कहनी ग़ज़ल हो पंख फुला कर ग़ज़ल कहो
छोड़ो ज़मीन चांद पे जाकर ग़ज़ल कहो।
पालो न दिल अपने कभी ख़ौफ़ मौत का
तस्वीरे-यार दिल में सजा कर ग़ज़ल कहो।
नम आंख खोल दे न कहीं राज़ इश्क़ का
पानी में थोड़ी आग लगाकर ग़ज़ल कहो।
नाकामियों पे अपनी बहाओ न अश्क़ तुम
उम्मीद के चराग़ जलाकर ग़ज़ल कहो।
यूँ ही गुज़र न जाएं बहारों के रात-दिन
सारे रिवाजो-रस्म निभा कर ग़ज़ल कहो।
चिलमन न कर दे बीच में तौहीन हुस्न की
रुख़ से ज़रा नक़ाब उठाकर ग़ज़ल कहो।
'विश्वास' हुस्ने-शोख़ से फेरो नहीं नज़र
आंखों की पुतलियों को नचा कर ग़ज़ल कहो।
</poem>