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18:00, 27 मई 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
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<poem>
हौसला आकाश छूने जो गया-
देख फिर डर आज छुपने को गया।
रात आई साथ लेकर चाँद को-
आज बच्चा मुस्कुराकर सो गया।
ओस की बूँदें गिरीं थी सीप में-
इश्क़ उनका एक मोती हो गया।
आज फिर से ख़्वाब में वह आ मिला-
एक पल फिर दिल लगाकर खो गया।
रात में दिन की थकन सोने लगी-
रूठ कर अब ख़्वाब भी समझो गया।
ऐ सुनो! क़दमों ज़रा धीमे चलो-
आस का इक बीज कोई बो गया।
</poem>
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