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12:18, 25 जून 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नीलम पारीक
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ओ मनङे रा मीत
नेह रो समन्दर तूँ
घूंट एक पाणी
मिल जावै जे इण तिरसे नै
के जासी तूँ रीत
ओ मनङे रा मीत
घड़ी स्यात
म्हारै सागै
दिल री धड़कन साँसा रा सुर
ढाळ जीवन री सरगम में
उकेरां कोई गीत
ओ मनङे रा मीत
पल पल लागै सदी सरीखो
सूखो सावण सूखो भादो
नेह रै मेंह नै ओ मन तरसे
मेघ नहीं बस नैणा बरसे
के अइयाँ ही बिन बरस्यां ही
रुत जावेली बीत
ओ मनङे रा मीत
ओ मनङे रा मीत
</poem>
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