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|रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
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<poem>
यार! सीने में जो धड़कता है।
देख उसको, बहुत फड़कता है।।

कल तलक मिन्नतें जो करता था,
आजकल दूर से झिड़कता है।।

शाह हो या फकीर हो कोई,
वक़्त से हर बशर हड़कता है।।

देख कर जुर्म इस ज़माने में,
एक पत्ता नहीं खड़कता है।।

बात वादे की जब करो उससे,
साँड़ जैसा ‘मृदुल’ भड़कता है।।
</poem>
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