भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यार! सीने में जो धड़कता है / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
Kavita Kosh से
यार! सीने में जो धड़कता है।
देख उसको, बहुत फड़कता है।।
कल तलक मिन्नतें जो करता था,
आजकल दूर से झिड़कता है।।
शाह हो या फकीर हो कोई,
वक़्त से हर बशर हड़कता है।।
देख कर जुर्म इस ज़माने में,
एक पत्ता नहीं खड़कता है।।
बात वादे की जब करो उससे,
साँड़ जैसा ‘मृदुल’ भड़कता है।।