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09:44, 8 अगस्त 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=समुद्र के आंसू
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पिंजरे में बराबर
बाघ और बकरी
बेबस फांदते कंदील
करते आज्ञा स्वीकार
जिजीविषा मजबूर करती है
खाने को
उसे
बांधिए डोर
ले चलिए चाहे जिस ओर
</poem>