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आंगन आँगन के इस कोने में,
साबुन के झाग भरे पानी से
घिरी क्यारी में,
कुछ गुलाब फैला रहे हैं अपनी सुगंधसुगन्ध
पर कोई
इन गुलाबों को
नहीं सूँघता।सूँघता ।
कैसा भी हो अकेलापन
छोटा नहीं होता।होता ।
'''अंग्रेज़ी अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
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