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19:59, 8 सितम्बर 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रणव मिश्र 'तेजस'
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<poem>
अँधेरा हो चुका था शाम से पहले
मुसाफ़िर डर गए अंजाम से पहले
ये मुमकिन था की कल तुम भी बदल जाते
तभी तो चुप रहे हंगाम से पहले
शबे-तन्हा, सितारे, चन्द आवारा
ये सब अपने हुए इल्ज़ाम से पहले
बहुत डरती है मुझसे रौशनी घर की
नहीं मिलते हम उससे काम से पहले
मैं जितना हूँ ये सब है और का हिस्सा
कभी अपना था मैं इस नाम से पहले
न जाने क्या किया उसने की सूरज चाँद
उभर आते किसी भी बाम से पहले
हमें भी अब पता है ख़ाब का मंज़र
तड़प लेते हैं कुछ आराम से पहले
</poem>