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<poem>
जहाँ मिला चंदी चारा चर रहे हैं
हम सुनहरे कल कीओर बढ़ रहे हैं

आज इस दल में कल उस दल में
दल बदल की राजनीति गढ़ रहे हैं

वंचितों को दे नहीं पाये जो रोटियाँ
चुनावी समर में हाथियों पर चढ़ रहे हैं

भ्रष्ट दुराचारी जेलों में जाने वाले
कुर्सियॉं पकड़ के कैसे अकड़ रहे हैं

संविधान की धज्जियाँ उड़ाने वाले
संसद में पहुँच संविधान गढ़ रहे हैं
</poem>