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बर्फ / अरुण चन्द्र रॉय

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बर्फ़ बोलते बोलती नहीं
पत्थरों की तरह
वे पिघलते वह पिघलती भी नहीं
इतनी आसानी से
वे वह फिर से जम जाते हैं जाती है
ज़िद्द की तरह ।
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