699 bytes added,
07:42, 3 अक्टूबर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जनता नहीं है यह
के विकास की डाँड़ी खेवाते
अपने करतबों पर नचाते
किनारे करते रहोगे
यह पानी है
इसकी जगह को
विकास के ईंट-पत्थरों से
भर दोगे
तो तुम्हारे घरों में
घुस आएगा यह
और नरेटी तक चढ़
बंद कर देगा
तुम्हारी सांसें।
</poem>