गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सीता: एक नारी / द्वितीय सर्ग / पृष्ठ 1 / प्रताप नारायण सिंह
7 bytes removed
,
17:45, 5 नवम्बर 2019
मन पर खड़ा था वेदना का मेरु, वह ढ़हने लगा
अपने
भविष
अनागत
का
कांतिमय नव-
सुनहला
रूप मैं गढ़ने लगी
नूतन उमंगों से भरी, हरि राह मैं तकने लगी
Pratap Narayan Singh
150
edits