1,177 bytes added,
19:15, 6 नवम्बर 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=नवगीत / प्रताप नारायण सिंह
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
हर तरफ
लहरा रहा है
स्याह साया आजकल
जानवर दो पैर के
खेती नई करने लगे
गंध से बारूद की
उद्यान को भरने लगे
साँस भी
दूभर हुई है
घुटन छाया आजकल
भँवर में यौवन फँसा
मिलती नहीं कोई दिशा
लुप्त होती चेतना अब
घुल रहा रग में नशा
देवता ने
मृत्यु के है
बरगलाया आजकल
कागजी हैं फूल सारे
अब नहीं वो ताजगी
बस बहानो से यहाँ पर
चल रही है ज़िन्दगी
सेतु
दोनों लोक का है
चरमराया आजकल
</poem>