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तुम भी चलो, हम भी चलें / प्रताप नारायण सिंह
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19:56, 6 नवम्बर 2019
पर नवसृजन का स्वप्न स्वर्णिम, चक्षुओं में नित गढ़ें
संबल बनाकर सत्य को, तुम भी बढ़ो, हम भी बढ़ें
हम अनवरत चलते रहें, हो तप्त कितनी भी धरा
Pratap Narayan Singh
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