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18:44, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:छाया सघन अँधेरा पथ पर
:लगता एकाकीपन दूभर,
:झ×झा के उन्मत्त प्रहारों से
:होता प्रखर विध्वंसक स्वर,
::नव बल संचित हो प्राणों में
::संघर्ष प्रकृति से नया-नया !
:मंज़िल है बेहद दूर अभी
:और अपरिचित मार्ग पड़ा है,
:लक्ष्य ओर प्रेरित चरणों का
:गतिमय संयम बड़ा कड़ा है,
::राह विषम, प्रति निमिष मनुज का
::संघर्ष प्रकृति से नया-नया !
:शून्य गगन में प्रलय-बाढ़ से
:घिरते जाते बादल के दल,
:प्रत्यावर्तन दुर्बलता है
:चलना ही है जीवन केवल,
::घन गर्जन, चपला नर्तन है
::संघर्ष प्रकृति से नया-नया !
:1945