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और सुबह है / वेणु गोपाल

339 bytes added, 17:15, 3 सितम्बर 2008
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}}<poem>
 
हम सूरज के भरोसे मारे गए
 
और
 
सूरज
 
घड़ी के।
 
जो बंद इसलिए पड़ी है
 
कि हम चाबी लगाना भूल गए थे
 
और
 
सुबह है
 
कि हो ही नहीं पा रही है।
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