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और सुबह है / वेणु गोपाल
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,
17:15, 3 सितम्बर 2008
|संग्रह=
}}<poem>
हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के।
जो बंद इसलिए पड़ी है
कि हम चाबी लगाना भूल गए थे
और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है।
अनिल जनविजय
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