भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और सुबह है / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
हम सूरज के भरोसे मारे गए
और
सूरज
घड़ी के।
जो बंद इसलिए पड़ी है
कि हम चाबी लगाना भूल गए थे
और
सुबह है
कि हो ही नहीं पा रही है।