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18:33, 23 अप्रैल 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मानोशी
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|संग्रह=
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{{KKCatGeet}}
<poem>गरमी में पहली बरखा सी
सोंधी गंध महकती हिन्दी |
चमकीला चुँधियाता रस्ता
शब्दों का गलियारा सस्ता
आगे-पीछे लगीं दुकानें
फिर भी नहीं बहकती हिन्दी |
मुक्त गगन में खुल कर उड़ती,
देशी-परदेशी से जुड़ती,
भाषाओं के मेले में ज्यों
चिड़िया-भाँति चहकती हिन्दी |
हिन्दी भाषा माँ समान है,
भाषा देशों की कमान है,
आडंबर की आग बुझाती
सुन्दर सहज सरसती हिंदी|
</poem>