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14:37, 18 मई 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= सुरेन्द्र डी सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक हरिण और तुम इंसान / सुरेन्द्र डी सोनी
}}
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<poem>
व्यस्तता -
हमारा ओढ़ा हुआ झूठ...
इतना भारी
कि उसके नीचे दबकर
मरा तो जा सकता है
लेकिन
उसे उतारकर
एक ओर रखा नहीं जा सकता...
बहुत काम है भाई..!
</poem>
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