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08:34, 5 जून 2020 {{KKGlobal}}
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<poem>
फेर हवाबाज़ आ गइल बादर ,
सिर्फ शहरे प छा गइल बादर।
रह गइल चुरुआ लगवले मडई,
छत के पानी पिया गइल बादर ।
भेख बहुरुपिया नियन बदले,
खूब बुरबक बना गइल बादर ।
नाहि बरसे के तनिक बा हबखब
खेत लहलस डूबा गइल बादर ।
खूब गरजल, चमक-दमक देके ,
खूब सपना देखा गइल बादर ।
भूख 'आसिफ' न कुछ सुने देलसु ,
राग बादल सूना गइल बादर ।
</poem>