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|रचनाकार=पद्माकर शर्मा 'मैथिल'
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<poem>
लहरों पर उतरी किरण
दरक उठा नीला दर्पण

चाँदी से तट पर सोने-सी धूल
पुरवैया गाँव की राह गयी भूल
पानी में टूटता गगन
दरक उठा नीला दर्पण

खंडित प्रतिबिंबों का छितराया रूप
पेड़ों से छन रही अनब्याहि धूप
छांहों में लग गयी अगन
दरक उठा नीला दर्पण

मछुए की डोरी का थर्राता गात
चुरा गया मछली के होठों की बात
वंसी की तीखी चुभन
दरक उठा नीला दर्पण

लहरों पर उतरी किरण
दरक उठा नीला दर्पण
</poem>
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