भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर का गीत / पद्माकर शर्मा 'मैथिल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

लहरों पर उतरी किरण
दरक उठा नीला दर्पण

चाँदी से तट पर सोने-सी धूल
पुरवैया गाँव की राह गयी भूल
पानी में टूटता गगन
दरक उठा नीला दर्पण

खंडित प्रतिबिंबों का छितराया रूप
पेड़ों से छन रही अनब्याहि धूप
छांहों में लग गयी अगन
दरक उठा नीला दर्पण

मछुए की डोरी का थर्राता गात
चुरा गया मछली के होठों की बात
वंसी की तीखी चुभन
दरक उठा नीला दर्पण

लहरों पर उतरी किरण
दरक उठा नीला दर्पण