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अब कुछ उस पार की भी सोचो / देवेन्द्र आर्य
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12:51, 18 जून 2020
जी अगुताया
चूल्हा-चौका तो लक-दक है
पर जीवन
कींचड़
कीचड़
धिसराया पहने पहने इन चरक चढ़े कपड़ों से मन
आजिज
आजिज़
आया
कुछ लुंगी छाप समय भी हो
थोड़ा तकरार की भी सोचो।
सुन बे जहुए
जबतक गोदाम न खाली हो
तो नया
मॉल
माल
आये कैसे
कुछ तो बाज़ार की भी सोचो।
Abhishek Amber
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