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न नींद है न कोई ख़्वाब आरज़ू न कोई थकन
तो क्यों ये ज़िस्म जिस्म का बिस्तर मेरी तलाश में है ।
बदल गया है ज़माना बदल गई तस्वीर,
वो एक ख़बर-सा बराबर मेरी तलाश में है ।
जिसे ’क़िताब ’किताब के बाहर’ तलाश मैंने किया,
वही हयात के बाहर मेरी तलाश में है ।
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