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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|अनुवादक=
|संग्रह=मिलन यामिनी / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
आ उजेली रात कितनी बार भागी,
 
सो उजेली रात कितनी बार जागी,
 
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई;
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
चाँदनी तेरे बिना जलती रही है,
 
वह सदा संसार को छलती रही है,
 
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई;
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
आज तेरे हास में मैं भी नहाया,
 
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया,
 
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई;
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
ओ अँधेरे पाख, क्‍या मुझको डरता,
 
अब प्रणय की ज्‍योति के मैं गीत गाता,
 
प्राण में मेरे समाई यह जुन्‍हाई;
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
</poem>
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