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हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई / हरिवंशराय बच्चन
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हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
आ उजेली रात कितनी बार भागी,
सो उजेली रात कितनी बार जागी,
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
चाँदनी तेरे बिना जलती रही है,
वह सदा संसार को छलती रही है,
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
आज तेरे हास में मैं भी नहाया,
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया,
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
ओ अँधेरे पाख, क्या मुझको डरता,
अब प्रणय की ज्योति के मैं गीत गाता,
प्राण में मेरे समाई यह जुन्हाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।