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12:57, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
वो तबस्सुम-रेज़ भी हैं और तग़ाफ़ुल केश भी
ज़िन्दगी की धूप में हैं मौत की परछाइयां
उनके तेवर देख कर अफसुर्दा-ख़ातिर है खुशी
ये तबस्सुम-रेज़ भी है और तग़ाफ़ुल केश भी
कोई बतलाए है ये चाहत की मंज़िल कौन सी
क्यों धुएं की ओट की मुश्ताक़ हैं रानाइयां
वो तबस्सुम-रेज़ भी हैं और तग़ाफ़ुल केश भी
ज़िन्दगी की धूप में हैं मौत की परछाइयां।
</poem>