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13:07, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
तुम को भी दिल का चैन मयस्सर नहीं होता
खुश हो रहे थे तुम जो बहुत मेरी मात से
औरों को भी तो ऐसे में अक्सर नहीं छुआ
तुम को भी दिल का चैन मयस्सर नहीं हुआ
इक मारिका जो जीत के भी सर नहीं हुआ
निस्बत तुम्हें भी थी तो बहुत मेरी ज़ात से
तुम को भी दिल का चैन मयस्सर नहीं होता
खुश हो रहे थे तुम जो बहुत मेरी मात से।
</poem>