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13:09, 13 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
उस फ़लक की नीली पीली वुसअतें किस काम की
जिसके दामन में खिलौने सा कोई बदल न हो
चाहे हों वो दोपहर की, सुब्ह की या शाम की
उस फ़लक की नीली पीली वुसअतें किस काम की
जो न कर पाएं बहम सूरत कोई इनआम की
यानि फल वाला शजर हो लेकिन उस पर फल न हो
उस फ़लक की नीली पीली वुसअतें किस काम की
जिसके दामन में खिलौने सा कोई बदल न हो।
</poem>