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10:55, 29 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सर्वेश अस्थाना
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<poem>
बहुत अच्छी लग रही ये मुस्कुराती धूप
प्रेम के अनुवाद रचती छांव वाली धूप
एक कोपल फूट कर बोली
लिए स्वागत में खड़े रोली
फिर उठाएंगे दिशाओं के कहार
हृदय के अनुबंध की डोली।
धड़कनों में फिर खिली है चमचमाती धूप
प्रेम के अनुवाद रचती छावं वाली धूप।
रूठ कर बैठी मिली जब
स्वाति वाली रात
और पपिहा कलपता सा
नापता जज़्बात।
मुस्कुरा कर कार का शीशा गिरा
बोली
आओ आओ खत्म सारी बात।
बढ़ गयी सब तोड़ सिग्नल गुनगुनाती धूप
प्रेम के अनुवाद रचती छांव वाली धूप।
मन ही मन दो घन बहुत बरसे
एलोवीरा बन गए सब कैक्टस हरसे
उड़ चले फिर ढाई आखर साथ
समर वेकेशन रही, कुछ माह के तरसे।
धूप की बाहों में सिमटी कुनमुनाती धूप।
प्रेम के अनुवाद रचती छांव वाली धूप।।
</poem>