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12:32, 29 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
वो मिरे साथ यूँ रहा जैसे
काटता हो कोई सज़ा जैसे।
साथ तेरा मुझे मिला जैसे
पा लिया कोई देवता जैसे।
आज सर्दी का पहला दिन था लगा
आसमां नीचे आ गया जैसे।
फिरते हैं वो वफ़ा-वफ़ा करते
खो गई हो कहीं वफ़ा जैसे।
ऐसे कहता है जी न पाऊंगा
वो मिरे बिन नहीं रहा जैसे।
काश मैं भी भुला सकूँ उसको
उसने मुझको भुला दिया जैसे।
हम तो बनकर रदीफ़ साथ रहे
और वो बदले क़ाफ़िया जैसे।
हमको यूँ डांटते हैं वो 'अम्बर'
उनसे होती नहीं ख़ता जैसे।
</poem>