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मनवा / अजय सहाब

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मनवा तू काहे बेचैन रे ?
अब तक तो पाया है सूरज
थोड़ी सह ले रैन रे !
ये जीवन है जैसे साया
सबने खोजा ,हाथ न आया
सागर सागर प्यास मिलेगी
आँखों आँखों आस मिलेगी
जब तक तेरी चाह है लंबी
जीवन की हर राह है लंबी
जब तक तृष्णा ,कैसी तृप्ति
जीवन जाल से कैसी मुक्ति
होंगे गीले नैन रे !
</poem>
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