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सूरज से मेरे दादाजी / शार्दुला नोगजा
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18:34, 6 सितम्बर 2020
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|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
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<poem>सूर्य किरण फिर आज पहन के एक घड़ी जापानी
कमरे में आयी सुबह-सवेरे, मिन्नत एक ना मानी
हाय! तिलस्मी सपनोंं में मैं मार रहा था बाज़ी
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