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05:22, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
घुट घुट के जिया अगर तो जीना क्या है
पतवार न हो जब तो सफ़ीना क्या है
आलामो-मसाइब से ओ डरने वाले
उम्मीद पे दिन काट, महीना क्या है?
</poem>