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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
इक ज़ात में ढलता हुआ सा अपना वजूद
क्या जान पे है सिर्फ रिदा अपना वजूद
देखें जो जमां मकां के पैराए में
है रुत की तरह एक फ़ज़ा अपना वजूद।
</poem>
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