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05:47, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
दर-पेश मसाइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस
बुरहान भी हाइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस
क्यों तर्ज़े-अमल अपना हो अंजाम बखैर
हम जहल के काइल ही कुछ ऐसे हैं कि बस।
</poem>