532 bytes added,
05:48, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
मंज़िल को पहुंच पाना कोई बात नहीं
घर लौट के भी आना कोई बात नहीं
है बात बड़ी कैसी कटी राहे-तलब
आराम से मर जाना कोई बात नहीं।
</poem>