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ज़ुनून / सपन सारन

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जब देश जुनून — आँखों में दंगा हो रहा थाऐ कवि तू तब कहाँ था ?— मेरे गुसल का नल टूटा था छिपी वो हंसी पानी बहता बचा रहा था जिसे पता है कि जीत गुलाबी होगी ।
जब लोग सारे रो रहे थेजो चुपचाप शोर मचा रही है ऐ कवि तू तब कहाँ था ?आजुओं-बाजुओं को सता रही है जिसके नशे में धुत्त हो आँखें एक अडिग ज़िद्द लिए बच्ची मेरी भूखी बड़ी थी बिना झपके खानाघूरती रहती हैं इक-वाना जुटा रहा था टुक
जब ख़ून गीला बह रहा था ऐ कवि तू तब कहाँ था ?— आसमां और जिनकी लाली में तारे कम थेमैं धुन्ध-धुआँ हटा रहा था  जब सब बेचारे मर चुके थेऐ कवि तू तब कहाँ था ?— नंगी क़ब्रें खुली पड़ी थीं घुलइक-इक की चादर बना जीवन गुलाबी सा हो रहा था हो …
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